बस्ती। भाव से ही प्रभु की प्राप्ति होती है। प्रभु भक्त के बाहरी आडंबर नहीं, बल्कि उसके हृदय के भाव को देखते हैं। यदि हम श्रीराम को पाना चाहते हैं तो वे केवल अनुराग और श्रद्धा से ही प्राप्त होंगे। उक्त विचार कथा व्यास आचार्य रामेश्वर नारायण ने बहादुरपुर विकास खण्ड के नारायणपुर बढईपुरवा गांव में चल रही 9 दिवसीय संगीतमयी श्रीराम कथा के चौथे दिन व्यक्त किए।
महात्मा जी ने कहा कि श्रीराम कथा मनमोहक, भवभय का नाश करने वाली तथा मर्यादा पूर्वक मानव जीवन जीने का सर्वोत्तम मार्ग है। उन्होंने बताया कि बाल्यकाल से ही भगवान श्रीराम तेजस्वी एवं आनंददायक लीलाओं से सबको मोहित करते थे।
कथा के दौरान व्यास जी ने कहा कि श्रीराम के यज्ञोपवीत संस्कार के बाद वे गुरु आश्रम गए और अल्प समय में ही सभी विद्याओं एवं कलाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया। नामकरण उपरांत उनके मनोहर बाल रूप का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि जब भगवान श्रीराम बाल क्रीड़ा करते थे, तो समस्त अयोध्या नगर हर्षोल्लास से भर जाता था।
कौशल्या माता उन्हें कभी गोद में लेकर झुलातीं तो कभी पालने में सुलातीं। श्रीराम के जन्म से समूची अयोध्या शहनाई की ध्वनि से गुंजायमान हो उठी थी। भगवान की बाल लीलाएँ सकारात्मकता, आनंद और समानता का संदेश देती हैं। कथा व्यास ने कहा कि बाल लीलाओं में ही भगवान राम का साम्यवादी और समतामूलक चिंतन झलकता है — वे सबके साथ एक समान व्यवहार करते थे।
महात्मा जी ने बताया कि भगवान शिव स्वयं हनुमान जी के साथ वेश बदलकर श्रीराम की बाल लीलाओं के दर्शन करने अयोध्या पहुंचे थे। उनके साथ काक भुसुण्डि सहित अनेक देवता भी उपस्थित हुए थे। कथा स्थल पर सजाई गई झांकियों ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया।
मुख्य यजमान रणजीत सिंह उर्फ पल्लू सिंह, लालजीत सिंह, एवं सर्वजीत सिंह ने विधि-विधानपूर्वक कथा व्यास का पूजन-अर्चन किया। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विभाग प्रचारक ऋषि, परमहंस शुक्ला, राजेश त्रिपाठी, नरेंद्र पाण्डेय, पवन कुमार उपाध्याय, हरिनारायण पाण्डेय, संरक्षक आशीष सिंह सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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