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Wednesday, August 6, 2025

सांसद रवि किशन शुक्ला ने संसद में उठाई माँग : लोकनाट्य सम्राट भिखारी ठाकुर को दिया जाए “भारत रत्न”


गोरखपुर। लोकसभा सांसद व अभिनेता रवि किशन शुक्ला ने आज संसद में भारत सरकार का ध्यान भोजपुरी भाषा और भारतीय लोकसंस्कृति के अमर पुरोधा भिखारी ठाकुर के योगदान की ओर आकर्षित करते हुए, उन्हें "भारत रत्न" से मरणोपरांत सम्मानित किए जाने की पुरज़ोर माँग की।

रवि किशन ने लोकसभा अध्यक्ष को संबोधित अपने बयान में कहा भिखारी ठाकुर न केवल भोजपुरी भाषा के सशक्त संवाहक थे, बल्कि सामाजिक चेतना के प्रकाश स्तंभ भी थे। उन्होंने लोकनाट्य और गीतों के माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियों दहेज प्रथा, नशाखोरी, जातिवाद, महिला शोषण के विरुद्ध जन-जागरूकता अभियान चलाया। उन्होंने अपनी लेखनी को एक हथियार बनाया और अपनी कलम से सामाजिक क्रांति को दिशा दी।

भिखारी ठाकुर: भोजपुरी का शेक्सपियर

भिखारी ठाकुर (जन्म: 18 दिसम्बर 1887 – मृत्यु: 10 जुलाई 1971) का जन्म बिहार के सारण ज़िले में एक नाई परिवार में हुआ था। बाल्यावस्था से ही उनमें कला, अभिनय और कविता के प्रति गहरी रुचि थी। सीमित औपचारिक शिक्षा के बावजूद उन्होंने जो सांस्कृतिक चेतना भोजपुरी समाज को दी, वह अद्वितीय है।

उन्होंने ‘बिदेसिया’ जैसे नाटकों के माध्यम से प्रवासी जीवन की पीड़ा को स्वर दिया, तो वहीं ‘गबर घिचोर’, ‘बेटी बिचारा’, और ‘नइहर के मालिनिया’ जैसे लोकनाट्य महिला सशक्तिकरण, पारिवारिक विघटन और सामाजिक सुधार जैसे मुद्दों पर आधारित थे। उनकी शैली में सहज व्यंग्य, भावनाओं की गहराई और जनभाषा की ताक़त दिखाई देती है।

उनका योगदान केवल भोजपुरी क्षेत्र तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने भारतीय लोकनाट्य की परंपरा को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। आज भी उनके नाटकों का मंचन गांवों से लेकर राष्ट्रीय मंचों तक होता है।

सांसद की मांग: भिखारी ठाकुर को मिले भारत रत्न

रवि किशन ने कहा: भिखारी ठाकुर ने जिस युग में लोकनाट्य को सामाजिक आंदोलन का रूप दिया, वह समय मीडिया और मंच के अभाव का था। इसके बावजूद उन्होंने कला को जन-जागरूकता का सशक्त माध्यम बनाया। यह विडंबना है कि इतने बड़े जनकवि को आज तक राष्ट्रीय स्तर पर वह मान-सम्मान नहीं मिला, जिसके वे वास्तविक अधिकारी हैं।”

उन्होंने भारत सरकार से अपील की कि भिखारी ठाकुर को मरणोपरांत 'भारत रत्न' देकर उनके योगदान को राष्ट्रीय मंच पर सम्मानित किया जाए। इससे न केवल लोकसंस्कृति को बल मिलेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को एक प्रेरणास्रोत भी प्राप्त होगा।

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