- मृतक आश्रित कोटे से नौकरी कर रही थी वरिष्ठ लिपिक, 21 जुलाई को जारी हो गया था बर्खास्तगी का आदेश
- पिता की मृत्यु के बाद कृषि विभाग में मिली थी लिपिक की नौकरी
शची वर्मा को पिछले महीने 21 जुलाई को बर्खास्त कर दिया गया था। वह 25 वर्षों से कृषि विभाग में तैनात थीं। उन्हें उनके पिता सत्येंद्र नाथ वर्मा की मृत्यु के बाद विभाग में मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति मिली थी। उनके पिता सत्येंद्र जिला कृषि अधिकारी कार्यालय में वरिष्ठ सहायक पद पर तैनात थे। उनकी मृत्यु जुलाई 1997 में हो गई थी। इसके बाद शचि वर्मा के लिए माता राधा वर्मा, भाई नवीन और बहन ऋतु वर्मा ने अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया। जिसके आधार पर 29 अप्रैल 1999 को उप कृषि निदेशक ने शची को कनिष्ठ सहायक के पद पर नियुक्त किया था। आरोप था कि उनके पिता की मृत्यु के समय उनकी माता राधा वर्मा स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थीं। नियमानुसार यदि माता-पिता दोनों सरकारी सेवा में हों और सेवा के दौरान किसी एक की मृत्यु हो जाती है तो उनके आश्रित नौकरी के हकदार नहीं हो सकते हैं। मामले की शिकायत गदहाखोर निवासी राज कुमार उर्फ पंडित ने की थी, जिसकी प्राथमिक जांच संयुक्त कृषि निदेशक (प्रसार शिक्षा एवं प्रशिक्षण ब्यूरो) ने की थी। उप कृषि निदेशक अशोक कुमार गौतम ने अपने आदेश में लिखा था कि शची की ओर से अपने बचाव में दिए गए तथ्यों का अभिलेखीय आधार पर विश्लेषण करने के निष्कर्ष में उनकी नियुक्ति मृतक आश्रित नियमावली 1974, 1994 व 1999 के विपरीत पाई गई है इसलिए शची की नियुक्ति बरकरार रखना विधिसम्मत प्रतीत नहीं होता है। ऐसे में उनकी सेवाएं समाप्त की जाती हैं।
बर्खास्तगी के बाद शची उच्च न्यायालय इलाहाबाद की शरण में चली गईं थीं, जहां याचिका शची वर्मा की वकील को सुनने के बाद न्यायमर्ति अजीत कुमार ने सेवा के संबंध में बर्खास्तगी आदेश पारित करने को न्यायोचित नहीं समझा। कारण यह था कि वह आदेश याचिकाकर्ता को अनुकंपा नियुक्ति के आधार पर केवल एक तृतीय पक्ष की शिकायत पर दिया गया था। यह भी तर्क दिया गया कि मृतक कर्मचारी के पति-पत्नी के सरकारी कर्मचारी होने की स्थिति में प्रतिबन्ध लगाने वाला नियम वर्ष 1999 में लागू हुआ था, जबकि याचिकाकर्ता के पिता की मृत्यु 2 नवंबर 1997 को हो गई थी और इसलिए स्थापित कानूनी स्थिति के आलोक में, अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर विचार करते समय, मृतक कर्मचारी की मृत्यु के समय लागू नियम को ही प्रभावी माना जाएगा। इस पर भी विचार किया जाना आवश्यक है। अधिवक्ता ने प्रति-शपथपत्र दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा था और उन्हें यह समय दिया गया है। इस प्रकरण को न्यायमूर्ति ने 15 सितंबर को सूचीबद्ध करने का आदेश जारी किया है और इस बीच शची की सेवाओं को समाप्त करने वाले 21 जुलाई के आदेश का प्रभाव और संचालन स्थगित रहेगा। साथ ही उनको कर्तव्यों का निर्वहन करने की अनुमति दी जा रही है और उन्हें वेतन का भुगतान भी किया जाएगा।
- हाई कोर्ट के आदेश का होगा अनुपालन
वरिष्ठ सहायक शची के सबंध में उच्च न्यायालय से आदेश की प्रति का इंतजार किया जा रहा है। जैसा आदेश होगा उसका अक्षरशः पालन किया जाएगा।
- अशोक कुमार गौतम, उप निदेशक कृषि बस्ती
- अशोक कुमार गौतम, उप निदेशक कृषि बस्ती
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