बस्ती। मनरेगा में भ्रष्टाचार कोई नयी बात नही है मामला आता है कुछ में कार्यवाही होती है बाकी ठंडे बस्ते में चला जाता है इसलिए कार्यवाही का कोई डर नही है। ताजा मामला विकासखंड कप्तानगंज के ग्राम पंचायत बट्टूपुर का है। जहां महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत हो रहे भ्रष्टाचार का है जो एक बार फिर सुर्खियों में हैं। अखबारों में भ्रष्टाचार उजागर होने के बावजूद प्रधान, रोजगार सेवक और ग्राम पंचायत सचिव फर्जी हाजिरी लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रधान, रोजगार सेवक और ग्राम पंचायत सचिव की मिलीभगत से निजी क्षेत्र में नौकरी कर रहे, स्वयं का प्रतिष्ठान चला रहे, मिनी बैंक पर काम कर रहे, दूसरे प्रदेशों में नौकरी कर रहे एवं थाने द्वारा नियुक्त ग्राम चौकीदार व्यक्ति का भी मनरेगा में हाजिरी लग रही है। इतना ही नहीं यह भी आरोप है कि वर्ष 2021 के ग्राम पंचायत चुनाव के बाद एक परिवार (हाउसहोल्ड) के 2 या 2 से अधिक सदस्यों के अलग जॉब कार्ड बनाए गए हैं। जिससे एक परिवार को कानूनी रूप से मिलने वाले 100 दिन के रोजगार के बजाय 200 से 300 दिन का रोजगार मिल रहा है, जबकि वास्तविक मजदूर वंचित रह जा रहे हैं । इससे न केवल योजना का उद्देश्य विफल हो रहा है, बल्कि गरीब मजदूरों के हक के साथ सरकारी धनराशि भी हड़पी जा रही है । ग्राम प्रधान, रोजगार सेवक और ग्राम पंचायत सचिव की मिलीभगत से यह योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है।
ग्रामीणों का कहना है कि मामला प्रकाश में आने के बाद भी जिम्मेदार कार्यवाही करने के बजाय अपने हिस्से की मलाई काटने के मस्ती मे व्यस्त दिखाई पड़ रहे हैं । प्रतिदिन की हाजिरी में बार बार पुराने फोटो अपलोड किए जा रहे हैं। अपलोड फोटो में जिस पुरुष, महिला को दिखाया जाता है उसका उस काम से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं होता यानि हाजिरी किसी की फोटो किसी और का ।
सूत्रों के अनुसार मनरेगा के ज़िम्मेदार अधिकारियों एवं कर्मचारियों की खुली छूट होने से यह भ्रष्टाचार फल फूल रहा है। ब्लाक प्रशासन की उदासीनता से सरकार के जीरो टालरेंस की नीति को पलीता लगाया जा रहा है। केन्द्र सरकार की मनरेगा योजना को ब्लॉक के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा तार-तार किया जा रहा है।
देखा जाय तो मनरेगा ग्रामीण विकास की रीढ़ है। मनरेगा ने ग्रामीण भारत को "काम के अधिकार" का वास्तविक अर्थ दिया है। 100 दिन की रोजगार गारंटी ने मजदूरों को आजीविका का सुरक्षा कवच प्रदान किया है। यह योजना गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों के लिए वरदान साबित हुई है। लेकिन ऐसे भ्रष्टाचार की वजह से इसका लाभ सही व्यक्ति को नहीं मिल रहा है लाभ कोई और उठा रहा।
अब देखना होगा कि योजना को सार्थक करने में जिम्मेदार उचित कार्यवाही करते है या मामला ठंडे बस्ते में चला जाएगा। मामले में पंचायत वासियों ने उच्चाधिकारियो से जांच कराकर दोषियो के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग किया है।
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