-कभी गरीबों के चूल्हे चौकों का इन्तजाम करने वाली योजना अधिकारियों के ऐशों आराम की योजना बन चुकी है
-डीसी मनरेगा की मिलीभगत से जनपद में मनरेगा योजना में और बढ़ गया है भ्रष्टाचार
बस्ती। जिस प्रकार से आए दिन मनरेगा भ्रष्टाचार की खबरें साक्ष्य सहित समाचार पत्रों की सुर्खियां बन रही हैं उससे मनरेगा में हो रहे भ्रष्टाचार से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि यदि धुंआ उठ रहा है तो आग लगी जरूर होगी भले ही उसे दूसरा रूप देकर दबा दिया जा रहा हो । मनरेगा के जनपदीय मुखिया डीसी मनरेगा पत्रकारों को जानकारी देने की बात तो दूर की है उनका फोन तक उठाने की जहमत नहीं लेना चाहते क्योंकि भ्रष्टाचार पर पत्रकारों के सवालों की कड़वाहट का स्वाद डीसी साहब को अच्छा नहीं लगाता ।
जिस प्रकार से जनपद में मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार की होड़ सी लगी है वह कहीं न कहीं भविष्य हेतु तो चिन्ताजनक है ही वतमान का भी शुभ संकेत नही है क्योंकि जिस प्रकार से जनपद में मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार का घुन लगा है यदि विभाग कभी हिसाब - किताब करना शुरू कर दिया तो बहुतेरे जेल में चक्की चलाते नजर आयेंगे । ग्राम पंचायतों में मनरेगा योजना के तहत चल रहे विकास कार्यों पर बारीकी से नजर दौड़ाई जाए तो दाल में कुछ काला नहीं पूरी दाल काली होने का प्रमाण बहुत ही आसानी से मिल जायेगा । भ्रष्टाचार का आलम इस कदर बढ़ गया है कि दहाई की माप वाली सड़कों का भुगतान सैकड़े की माप में हो रहा है फिर भी जिम्मेदारों को मनरेगा में भ्रष्टाचार नजर नहीं आ रहा है इस प्रकार मनरेगा भ्रष्टाचार के बढ़ रहे फैशन को लाइलाज बीमारी कहा जाए तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा ।
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