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Thursday, June 19, 2025

64 ग्रंथों के रचयिता महात्मा बनादास जी महाराज


अवध की पुण्य सलिला सरयू की शस्य श्यामला पावन भूमि गोण्डा की धरती पर भगवान राम के गोवंश का अमृत मयी दुग्ध पान कर भक्ति के संस्कार में पले रमे जिन मनीषियों ने सगुण साहित्य की राम भक्ति काव्य धारा को अविरल प्रवाहित किया है उनमें गोस्वामी तुलसीदास व बाबा बेनीमाधव दास की परम्परा के प्रतिनिधि संत कवि बनादास का नाम आदर के साथ लिया जाता है।

  महात्मा बनादास जी महाराज के वंशज मंहत अंकित दास के के अनुसार गोनार्द (गोण्डा) की धरती पर महात्मा बनादास का जन्म नवाबगंज के सन्निकट ग्राम अशोकपुर में सन 1821 ईस्वी में एक सम्भ्रांत क्षत्रिय परिवार में हुआ था। अयोध्यावास कर अनेक संत मनीषियों ने साधना की.  ऐसे ही महान साधकों में बनादास प्रमुख हैं जिन्होने अपनी भक्ति साधना से अध्यात्म के शिखर पर पहुंच कर भक्ति साहित्य को नई दिशा दी। बनादास ने युवा अवस्था में अचानक सन्यासी ग्रहण कर लिया था। विवाह के बाद उनके सुखमय दाम्पत्य जीवन में उस समय वज्रपात हो गया जब उनके पुत्र की बारह वर्ष की अल्पायु में ही मृत्यु हो गई। शोक में डूबे वह विचलित मन:स्थिति में परिजनों के साथ बालक का शव लेकर अयोध्या आएं जहां अन्तिम संस्कार के बाद फिर घर वापस नही लौटे। परिजनों के अथक मान मनौव्वल के बाद भी गृहस्थ जीवन को ठुकराकर उन्होंने सन्यासी धारण कर लिया। पुत्र शोक से संतप्त हृदय को उन्होंने रघुवीर को समर्पित कर दिया। तेरा तुझको अर्पण भक्तों से प्राप्त सूखा चना चबेना खाकर सरयू का जल ग्रहण कर साधना में लीन हो गए। अनवरत चौदह वर्ष की साधना के बाद उन्हें भगवान राम सीता केयुगल स्वरूप में दर्शन व प्रभु की असीम अनुकंपा मिली। वीतरागी संत के रूप में उनकी गणना अयोध्या के सिद्ध महात्माओं मे होने लगी। भगवत् प्रेरणा से वे साहित्य की रचना कर भगवान की महिमा का गायन करने लगे। गृह शिक्षा से मिले अक्षर ज्ञान व सत्संग की भावपूंजी और भगवत-कृपा से उन्होने अपने भवहरण कुंज में 64 ग्रंथों की रचना कर डाली। धन ऐश्वर्य व लोकप्रियता का लोभ उन्हें अयोध्या के प्रति प्रेम से डिगा न सका। जीवन के 71 बसंत की आयु पूरी करके 1892 ईस्वी में उनका परलोकगमन हुआ। काल के प्रवाह में उनका बहुमूल्य साहित्य विलुप्त हो रहा है। अयोध्या में तुलसी उद्यान के पीछे महात्मा बनादास द्वारा स्थापित पुराना आश्रम व अशोकपुर में पूज्य संत देवरहा बाबा द्वारा लोकार्पित स्मारक की देखभाल उनके सातवीं पीढ़ी के वंशज अंकित सिंह कर रहे हैं। उनकी आकांक्षा है कि अवध विश्वविद्यालय व मां पटेश्वरी विश्वविद्यालय की ओर से संत बनादास के आध्यात्मिक साहित्यिक धरोहर को सुरक्षित संरक्षित करने के लिए उनके जीवन व साहित्य कृतित्व पर शोध की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। भक्त कवि बनादास ने 64 ग्रंथों में उनके विस्मरण सम्हार ग्रंथ पर विश्वविद्यालय व काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा उनके आध्यात्मिक व साहित्य पर शोध किया गया है। संत का 1892 ईस्वी में लखनऊ के नवल किशोर प्रेस से प्रकाशित उभय प्रबोधक रामायण भक्तों व विद्वानों में लोकप्रिय हुआ।
उनके ज्ञात ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -
1- अर्ज़ पत्रिका, 2- राम निरूपण, 3- राम पंचाग, 4- सुरसरि पंचरत्न 5- विवेक मुक्तावली, 6- राम छठा, 7- गरजपत्री, 8- मोहिनी अष्टक, 9- अनुराग विवर्धक रामायण, 10- पहाड़ा, 11- मात्रा मुक्तावली, 12- ककहरा अरिल्ल, 13- ककहरा झूलना, 14- ककहरा कुण्डलियां, 15- ककहरा चौपाई ,16-  खंडन खड्ग
17- विक्षेप विनाश, 18- आत्मबोध, 19- नाम मुक्तावली, 20- अनुराग रत्नावली, 21- व्रह संगम, 22- विज्ञान मुक्तावली, 23- तत्वप्रकाश वेदांत, 24- सिद्धांत बोध वेदान्त, 25- शब्दातीत वेदांत, 26- अनिर्वाच्य वेदांत, 27- स्वरूपानन्द वेदांत, 28- अक्षरातीत वेदान्त, 29- अनुभवानन्द वेदान्त, 30- वेदांत पंचांग, 31- ब्रह्मायन वेदांत, 32- ब्रह्मायन तत्व निरुपण, 33- ब्रह्मायन ज्ञान मुक्तावली, 34- ब्रह्मायन विज्ञान छतीसा, 35- ब्रह्मायन शांति सुस्पित, 36- ब्रह्मायन परमात्मा बोध, 37- ब्रह्मायन पराभक्ति परतु, 38- शुद्ध बोधक वेदान्त ब्रह्मायन सार, 39- रकरादि सहस्त्र नाम, 40- मकरादि सहस्त्र नाम, 41- बजरंग विजय, 42- उभयबोधक रामायण, 43- विस्मरण सम्हार, 44- सार शब्दावली, 45- नाम परतु, 46- नाम परतु संग्रह, 47- बीजक, 48- मुक्तावली, 49- गुरु महात्मय, 50- संत सुमिरनी, 51- समस्यावली, 52- समस्या विनोद, 53- झूलन पचीसी, 54- शिव सुमिरनी, 55- हनुमंत विजय ,56- रोग पराजय, 57- गजेंद्र पंचदशी, 58- प्रह्लाद पंचदशी, 59-द्रोपदी पंचदशी, 60- दाम दुलाई, 61- अर्ज़ पत्री (विलुप्त ग्रंथ), 62- मोक्ष मंजरी, 63-सगुन बोधक,64- वीजक राम गायत्री।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)
गोण्डा, उत्तर प्रदेश 

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