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Saturday, August 12, 2023

मानसून सत्र के दौरान विपक्ष ने डग्गामार वाहनों पर साधा निशाना


लखनऊ। ‘डग्गामार’ पब्लिक ट्रांसपोर्ट सेक्टर से लेकर परिवहन विभाग और यूपी रोडवेज के साथ जुड़ा एक ऐसा सार्वभौमिक शब्द, जो अनधिकृत और अवैध होते हुए गाहे-बगाहे ट्रांसपोर्ट के उपरोक्त तीनों अंगों से जुड़ जाता है या फिर किसी न किसी बहाने जोड़ दिया जाता है। कुछ ऐसा ही दृश्य अबकी बार यूपी विधानसभा के मानसून सत्र के आखिरी दौर में देखने को मिला। जब विपक्षी दल के नेताओं ने एक स्वर से योगी सरकार को सदन में प्रदेश के विभिन्न मार्गों पर अवैध रूप से संचालित होने वाले डग्गामार वाहनों को लेकर प्रश्न-दर-प्रश्न करने शुरू किये। अब चूंकि विपक्षी जनप्रतिनिधियों की तरफ से बात डग्गामार वाहनों की थी और प्रहार योगी सरकार पर किया जा रहा था, ऐसे में इसका जवाब देने के लिये सूबे के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने तमाम तरह के तर्क-वितर्क और नियम-विनियम का हवाला देते हुए प्रतिपक्ष को करारा जवाब देने की पुरजोर कोशिश की। सीएम योगी के परिवहन मंत्री लगातार कई बार सदन में अपनी सीट से कहते रहें कि प्रदेश में इस समय एक भी डग्गामार वाहन नहीं रह गया है, तर्क दिया कि केवल ऐसे कुछ वाहन हो सकते हैं कि जोकि परिवहन विभाग के संचालन संबंधी नियमों व शर्तों का उल्लंघन करते होंगे। बहरहाल, जब डग्गामार शब्द को लेकर दोनों तरफ से सदन में महिमामंडन कहीं जरूरत से ज्यादा होने लगा तो संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने बीच में पड़कर प्रकरण को संभाला और फिर सदन तब कहीं जाकर दैनिक तौर पर संचालित होना शुरू हुआ।
- क्या है डग्गामार की परिभाषा...!
वैसे तो डग्गामार शब्द की इंट्री पब्लिक ट्रांसपोर्ट जगत में कब हुई, कब इसका नाम परिवहन विभाग, रोडवेज और यातायात विभाग से जोड़ा जाने लगा इसका अभी तक काफी शोध करने के बाद कोई ठोस लिखित या मौखिक प्रमाण तो नहीं मिल सका। हालांकि विभागीय मान्यता निकलकर यही आ रही है कि डग्गामार एक देहाती शब्द है जोकि तीन-चार दशक पहले पूर्वांचल क्षेत्र की गंवई शब्दावलि से निकलकर आया है।
लेकिन परिवहन विभाग के कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों से बात की गई तो उनका यही कहना रहा कि उनके विभाग में ज्वाइनिंग से पूर्व ही डग्गामार शब्द का इस्तेमाल विभागीय प्रवर्तन कार्यरूटीन में लिया जाता रहा। फिर भी विभागीय दृष्टि से इसकी सटीक परिभाषा यही बतायी जा रही है कि...जिस वाहन का परमिट न हो, यानी जो बगैर परमिट के सड़कों पर संचालित हो रही वही डग्गामार है। जबकि मौजूदा दौर के कुछ परिवहन जानकारों की मानें तो अवैध या अनधिकृत वाहन संचालन की पराकाष्ठा को डग्गामार की संज्ञा दी जा सकती है, मतलब इससे है कि जो वाहन ऑन रोड विभाग के सबसे मूल नियम-शर्तों का उल्लंघन करता हो वही डग्गामार है।
- क्यों है डग्गामार जरूरी...!
देखा जाये तो जिस तेजी से प्रदेश की आबादी बढ़ती जा रही है और यहां से अन्य पड़ोसी प्रदेशों के लोगों का भी वृहद स्तर पर विभिन्न परिवहन साधनों द्वारा आवागमन होता है, ऐसे में अकेले यह यूपी रोडवेज के तकरीबन 11.50 हजार बसों के बेड़ॆ की वश की बात नहीं है कि इतनी सवारियों को ढोया जा सके। 
वहीं विभाग में पंजीकृत निजी सवारी वाहनों की बात करें तो इनकी भी ट्रांसपोर्ट सेक्टर में अहम भूमिका होती है। हालांकि विभागीय जानकारों की मानें तो उदाहरण के तौर पर जैसे जब कहीं बिहार से पंजाब को अन्तर्राज्यीय बसों द्वारा सैकड़ों मजदूरों को यूपी होते हुए ले जाया जाता है और प्रवर्तन अभियान में बीच रास्ते पकड़ ली जाती हैं, तो कहने को तो ये डग्गामार बसें मानी जाती है। मगर तार्किक दृष्टि से ऐसा नहीं है क्योंकि इन बसों का बकायदा परमिट होता है जोकि डग्गामार वाहनों के उल्लंघन की मूल अनिवार्यता है, जबकि इनका फिटनेस, बीमा, व पॉल्यूशन आदि अधिकांशतरू पूरा ही होता है। केवल अंतर यही होता है कि ये बसें परमिट संबंधी नियम-शतों का उल्लंघन करते हुए एक प्रांत के निश्चित प्वाइंट से सीट से कहीं अधिक सवारियां उठाकर अन्य राज्यों की सीमाओं को पार करते हुए दूसरे गंतव्य राज्य के दूसरे तयशुदा प्वाइंट तक छोड़ने का काम करती हैं। जबकि इनका परमिट ऑल इंडिया को होता है, मगर ये फुटकर सवारियां उठाती हैं। ऐसे में जानकार लोगों का यह भी मत है कि यदि ये बसें न हो तो यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, राजस्थान आदि के श्रमिक वर्ग से जुड़े मजदूरों को पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात आदि के कल-कारखानों व खेत-खलिहानों में काम करने के लिये दैनिक श्रमिक समय से न मिल पायें।
- सबसे बड़ा डग्गामार कौन...!
लम्बे अर्से से विभाग की कार्यप्रणाली पर नजर रखने वाले कुछ एक्सपर्ट से बात की गई तो उनका ये कहना रहा कि सबसे बडे डग्गामार वाहन तो वो हैं जोकि प्राइवेट वाहन के नाम पर आरटीओ-एआरटीओ कार्यालयों में रजिस्ट्रेशन कराते हैं पर इसका सड़कों पर प्रयोग कॉमर्शियल रूप में करते हैं। इनके अनुसार इस श्रेणी में सबसे अधिक आने वाले वाहनों पर नजर दौड़ायी जाये तो उसमें सबसे ऊपरी पायदान पर बोलरो, स्कूली मारूति वैन व छोटे कार आयेंगे। वहीं विभागीय सूत्रों का तो यहां तक कहना रहा कि अभी यदि इस बिंदु पर तमाम सरकारी कार्यालयों से अटैच प्राइवेट वाहनों को देखा जाये तो उनमें से अधिकांश डग्गामार की श्रेणी में निकल आयेंगे। वहीं दूसरी तरफ शहर से दूर ग्रामीण व कस्बाई इलाकों में तो बोलरो जीप, मैक्सी कैब इस श्रेणी की तमाम प्राइवेट गाड़ियां शादी-बारात और लोकल रूटों पर सावर्जनिक परिवहन के तौर पर संचालित होती हैं जोकि पूर्णतयारू डग्गामार कहीं जा सकती हैं।

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