- श्रीलंका में उत्पीड़न का शिकार हुए तमिलों को सीएए में शामिल नहीं किया गया
नई दिल्ली। तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। डीएमके ने अपने हलफनामे में सीएए को मनमाना बताते हुए कहा है कि इसमें उन तमिलों को शामिल नहीं किया गया है जिनका श्रीलंका में उत्पीड़न हुआ। इस मामले पर 6 दिसंबर को सुनवाई होनी है।
डीएमके ने कहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम सिर्फ तीन देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से संबंधित है। सीएए में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों को ही शामिल किया गया है, जबकि इस्लाम को इससे बाहर रखा गया है। इसके अलावा डीएमके का कहना है कि यह धार्मिक अल्पसंख्यकों पर विचार करते हुए भी असंगत है क्योंकि यह कानून भारतीय मूल के ऐसे तमिलों को बाहर रखता है जो वर्तमान में उत्पीड़न के कारण श्रीलंका से भागकर भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 31 अक्टूबर को दो वकीलों को सभी याचिकाओं में उठाए मुख्य मसलों का संग्रह तैयार करने का जिम्मा दिया था। सीएए के मामले में 232 याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इनमें से 53 असम और त्रिपुरा से जुड़ी हुई हैं। त्रिपुरा और असम से जुड़ी याचिकाएं अलग से सुनी जाएंगी। 31 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने त्रिपुरा और असम को लेकर अलग से हलफनामा दाखिल कर कहा था कि सीएए से असम समझौता और उत्तर-पूर्व के लोगों के सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है। डीएमके ने सीएए को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर रखी है।
हलफनामा में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा था कि सीएए में अफगानिस्तान, पाकिस्तान या बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 से पहले आए हुए हिंदूओं, ईसाइयों, जैनों, पारसियों और बौद्धों की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है। सीएए भारत में अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए लाया गया है। 17 मार्च 2020 को केंद्र सरकार ने इस मामले में हलफनामा दाखिल किया था। 133 पेजों के हलफनामे में केंद्र ने कहा था कि सीएए में कोई गड़बड़ी नहीं है। केंद्र सरकार ने कहा था कि इस कानून में कुछ खास देशों के खास समुदाय के लोगों के लिए ढील दी गई है। केंद्र ने कहा था कि संबंधित देशों में धर्म के आधार पर उत्पीड़न किया जा रहा है। पिछले 70 सालों में उन देशों में धर्म के आधार पर किए जा रहे उत्पीड़न को ध्यान में रखते हुए संसद ने ये संशोधन किया है। सीएए से किसी भी भारतीय नागरिक का कानूनी, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष अधिकार प्रभावित नहीं होता है।
केंद्र सरकार ने कहा था कि नागरिकता देने का मामला संसदीय विधायी कार्य है, जो विदेश नीति पर निर्भर करती है। इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने कहा था कि इस कानून से संविधान के अनुच्छेद 14 का कोई उल्लंघन नहीं होता है।
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