बस्ती। आला हजरत बरेली शरीफ के वंशज मौलाना अरसलान रजा ने कहा कि कर्बला में इमाम हुसैन व उनके साथियों की शहादत की वजह से ही मोहर्रम का महीना जाना जाता है। मजलिसे आयोजित करके अहलेबैते-रसूल व वाकए कर्बला बयान किया जाता है। उन्होंने यह बातें अंजुमन रजाए मुस्तफा की जानिब से रविवार को जीआईसी स्थित एक होटल के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में कहीं।
उन्होंने कहा कि पैगम्बर ने हर अवसर पर अपने अहलेबैत की फजीलत को लोगों के सामने बयान किया। उन्होंने फरमाया था कि जिसने अहलेबैत से मोहब्बत की, उसने मुझसे मोहब्बत की। अहलेबैत का दुश्मन, मेरा दुश्मन है। कहा कि बिना वसीले के खुदा नहीं मिल सकता है। अहलेबैत खुदा तक पहुंचने का वसीला हैं। इमाम हसन व इमाम हुसैन दो अजीम शहजादे हैं। दुनिया में उनसे पहले किसी का यह नाम नहीं था। अल्लाह ने यह दोनों नाम अपने पास छुपा कर रखा था। दोनों अपने नाना पैगम्बे-इस्लाम की जीती-जागती तस्वीर थे।
उन्होंने कहा कि एक अवसर पर पैगम्बर दोनों नवासों को अपने कंधे पर बिठाकर कहीं जा रहे थे। हजरत उमर रजि. ने कहा दिया कि कितनी अच्छी सवारी है। इस पर पैगम्बर ने फौरन जवाब दिया कि यह क्यों नहीं देखते कि कितनी अच्छी सवारी है। पैगम्बर ने हर मौके पर हसनैन को दुनिया के सामने पहचनवाया।
मौलाना अलाउद्दीन मिस्बाही ने कहा कि कर्बला के शहीदों की खून की सुर्खी ने ही इस्लाम को जिंदा रखा है। इमाम के सिरे-अकदस ने नैजे की नोंक पर भी कुरआन की तिलावत कर यह बता दिया कि अल्लाह की किताब उनके साथ है। इमाम हुसैन की शहादत किसी एक कौम के लिए नहीं बल्कि दुनिया के हर हक पसंद इंसान के लिए है। देश की जंगे आजादी से लेकर दुनिया के अन्य हिस्सों में चले आंदोलनों को कर्बला से प्रेरणा मिली। हिजरत में पैगम्बर के साथ हजरत अबुबक्र रजि. के साथ रहने के वाकए को बयान करते हुए कहा कि इश्के रसूल में ही उनकी मंजिलत बुलंद हुई है। मौलाना मकसूद ने कहा कि अगर कोई इंसान दिल से माफी मांगता है तो अल्लाह जरूर उसकी गुनाहों को माफ कर देता है। इससे पूर्व कारी जावेद अहमद, जियाउद्दीन, अरशद ने नात व मनकबत पेश की। संचालन अब्दुल कयूम ने किया। मो. अयूब मुशाहिदी ने मेंहमानों का शुक्रिया अदा किया।
डा. आबिद अली, मुस्लिम सिद्दीकी, कलीम, हाजी पीर मोहम्मद, नुरूद्दीन, फखरूद्दीन, अब्दुल्लाह, हसन अली, परवेज सहित अन्य लोग कार्यक्रम में मौजूद रहे।
Monday, September 23, 2019
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शहीदों के खून की सुर्खी ने ही इस्लाम को जिन्दा रखा है
शहीदों के खून की सुर्खी ने ही इस्लाम को जिन्दा रखा है
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