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Saturday, August 2, 2025

‘योगी आदित्यनाथ का भी नाम लो, तो तुम्हें छोड़ देंगे’, मालेगांव ब्लास्ट मामले में शामिल गवाह का बड़ा खुलासा


मुंबई। मालेगांव ब्लास्ट मामले के गवाह मिलिंद जोशीराव ने खुलासा किया है कि एटीएस के अधिकारी उन पर दबाव बना रहे थे कि योगी आदित्यनाथ का भी नाम लें, ताकि उन्हें गिरफ्तार किया जा सके। जोशीराव ने बताया कि एटीएस उन पर मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कुछ नेताओं के नाम लेने की बात कह रहा था, जिसमें योगी आदित्यनाथ का भी नाम शामिल था।
गवाह मिलिंद जोशीराव के मुताबिक, उन पर योगी आदित्यनाथ, इंद्रेश कुमार, साध्वी, काका जी, असीमानंद और प्रोफेसर देवधर का नाम लेने का दबाव बनाया गया था। उनसे कहा गया था कि अगर इन सभी लोगों का नाम मालेगांव ब्लास्ट मामले में लिया, तो हम उन्हें निश्चित तौर पर छोड़ दिया जाएगा।
जोशीराव ने बताया कि एटीएस अधिकारी लगातार उन पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं का नाम लेने के लिए मानसिक दबाव बना रहे थे। वो सात दिनों तक एटीएस की हिरासत में रहे, जहां उन्हें अलग-अलग तरह से प्रताड़ित किया गया, ताकि वो उनके मुताबिक अपना बयान दें।
वहीं, रायगढ़ मीटिंग को लेकर जोशीराव ने कहा कि उन्हें ऐसी किसी मीटिंग के बारे में जानकारी नहीं है, जहां हिंदुत्ववादी राष्ट्र बनाने की शपथ ली गई हो। इसके अलावा, जोशीराव ने दावा किया कि डीसीपी श्रीराव और एसीपी परमबीर सिंह ने उन्हें धमकी दी, डराया, ताकि वो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं का नाम ले। एटीएस ने अपने बयान में जो बातें कही हैं, उसमें बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है। ये एटीएस ने अपनी तरफ से लिखी है।
बता दें कि मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में 17 साल के लंबे इंतजार के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने गुरुवार (31 जुलाई) सबूतों के अभाव में सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया।
कोर्ट ने कहा था कि एटीएस और एनआईए की चार्जशीट में काफी अंतर है। अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि बम मोटरसाइकिल में था। प्रसाद पुरोहित के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला कि उन्होंने बम बनाया या उसे सप्लाई किया। यह भी साबित नहीं हुआ कि बम किसने लगाया। घटना के बाद विशेषज्ञों ने सबूत इकट्ठा नहीं किए, जिससे सबूतों में गड़बड़ी हुई।
कोर्ट ने यह भी कहा था कि धमाके के बाद पंचनामा ठीक से नहीं किया गया, घटनास्थल से फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए और बाइक का चेसिस नंबर कभी रिकवर नहीं हुआ। साथ ही, वह बाइक साध्वी प्रज्ञा के नाम से थी, यह भी सिद्ध नहीं हो पाया।

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