तीन दिवसीय अंर्तराष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया
गोरखपुर। दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में नाथ सम्प्रदाय का वैश्विक प्रदेय विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंर्तराष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि नाथ पंथ सिद्ध संप्रदाय है, इस संप्रदाय के योगियों और संतों से जुड़े कई ऐसे प्रसंग हैं, जो सभी को नाथ पंथ से जुड़ने के लिए बाध्य करते हैं। यही वजह है कि पूरी दुनिया में नाथ पंथ का विस्तार है, पाकिस्तान के पेशावर, अफगानिस्तान के काबुल और बंग्लादेश के ढाका को भी नाथ पंथ के योगियों ने अपनी साधना स्थली बनाया है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा नाथ पंथ की परंपरा आदिनाथ भगवान शिव से शुरू होकर नवनाथ और 84 सिद्धों के साथ आगे बढ़ती है। यही वजह है कि पूरी दुनिया में इस संप्रदाय के मठ, मंदिर, धूना, गुफा, खोह देखने को मिल जाएंगे। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी परंपरा और संस्कृति को विस्मृत करके अपने लक्ष्य को नहीं हासिल नहीं कर सकता। ऐसा व्यक्ति त्रिशंकु बनकर रह जाता है और त्रिशंकु का कोई लक्ष्य नहीं होता। समाज में व्यापक परिवर्तन के लिए उन्होंने शिक्षा केंद्रों से अपील की कि वह अपनी संभ्यता और संस्कृति से जुड़कर अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं।मुख्यमंत्री जी ने आगे कहा कि नेपाल की राजधानी काठमांडू का मूल नाम काष्ठ मंडप था। यह काष्ठ मंडप नाम कहीं ओर से नहीं बल्कि गोरखनाथ मंदिर से मिला है, जो काष्ठ मंडप पर आधारित था। उन्होंने कहा कि काठमांडू के पशुपति नाथ मंदिर और पास की एक पहाड़ी के बीच बाबा गोरखनाथ का मंदिर आज भी मौजूद है। इसी क्रम में उन्होंने नेपाल के एक राज्य दान के राजकुमार रत्नपरिक्षित का जिक्र किया, जो बाद में रतननाथ के नाम से नाथपंथ के बहुत सिद्ध योगी हुए। उन्होंने कहा कि बलरामपुर के देवीपाटन में जिस आदिशक्ति पीठ की स्थापना गुरु गोरक्षनाथ ने की वहां पूजा करने के लिए योगी रतननाथ प्रतिदिन दान से आया जाया करते थे। आज भी चैत्र नवरात्र पर एक यात्रा दान से आती है और प्रतिपदा से लेकर चतुर्थी तक वहां नाथ अनुष्ठान होता है। पंचमी से नवमी तक वहां पात्र देवता के रूप में गोरखनाथ का अनुष्ठान होता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि नाथपंथ के योगियों ने कभी विकृतियों का समर्थन नहीं किया बल्कि ऐसी विकृतियां जो समाज के विखंडन का कारण बनती हैं, उनके खिलाफ पुरजोर आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि विकृतियां तभी जन्म लेती हैं जबकि व्यक्ति को खुद पर विश्वास नहीं होता। ऐसे में उनके सामने स्वयं को बचाने की चिंता होती है। इसी वजह से गुरु गोरखनाथ ने प्रत्यक्ष अनुभूति को जीवन का आधार बनाया। प्रत्यक्ष अनुभूति पर आधारित न होने वाले तथ्यों को नाथपंथ में कभी मान्यता नहीं मिली। यही वजह है आदि काल नाथपंथ का प्रभाव झोपड़ी से लेकर राजमहल तक रहा है। इसके लिए उन्होंने नेपाल के राज परिवार की नाथपंथ के प्रति आस्था का जिक्र किया। मुख्यमंत्री ने राजस्थान की सपेरा समुदाय की एक पद्म पुरस्कार प्राप्त महिला और बद्रीनाथ में नाथ योगी सुंदरनाथ से जुड़ा प्रसंग भी सुनाया।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष डीवी सिंह ने कहा कि सत्य एक ही है विद्वानों ने अलग अलग व्याख्या की है सभी में समानता है। उन्होंने कहा कि नाथ पंथ में जीवन में सात्विकता पर बहुत जोर दिया गया है। 1905 में महामना मदन मोहन मालवीय ने कहा कि भारतीय जड़ो से जुड़े रहते हुए हमें भारतीयों को बेहतर शिक्षा प्रदान करते हुए वैश्विक नागरिक बनाया जाये। इस अवसर पर कुलपति द0द0उ0गो0वि0वि0 राजेश सिंह ने सभी का स्वागत करते हुए संगोष्ठी के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने संगोष्ठी की स्मारिका, शोध पत्र, नाथ सम्प्रदाय के प्रथम खण्ड के प्रारूप, नाथ पंथ तीर्थ भौगोलिक मानचित्रांे सहित कुलपति द्वारा लिखित पुस्तको का भी विमोचन किया।
इस अवसर पर विभिन्न जनप्रतिनिधि गण एवं वरिष्ठ अधिकारी गण उपस्थित रहें।
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