नई दिल्ली। जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना के बीच, भारत के पूर्व चीफ जस्टिस (सीजेआई) यूयू ललित ने रविवार को इसका बचाव करते हुए इसे ‘सर्वश्रेष्ठ’ बताया। उन्होंने कहा, ‘मेरी राय में कॉलेजियम सबसे अच्छी प्रणाली है, जिसने साबित किया है कि यह प्रभावी ढंग से काम करती है।’ आज शाम अपने आवास पर पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि यदि संसद चाहे तो राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) जैसा कानून फिर से बनाने के लिए स्वतंत्र है।
एक न्यूज चैनल से बातचीत में जस्टिस ललित ने कहा कि राज्यसभा सदस्यता या राज्यपाल का पद स्वीकारना सेवानिवृत्त प्रधान न्यायाधीश के लिए सही विचार नहीं है। पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई जैसे न्यायाधीशों के सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी पोस्टिंग स्वीकार करने के सवाल पर उन्होंने यह बात कही। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यह उनका निजी विचार है, वह ऐसा नहीं कह रहे कि वे लोग गलत हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष, लोकपाल और विधि आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने में कोई आपत्ति नहीं होगी।
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में अपारदर्शी होने के लिए कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना की थी। रिजिजू ने कहा था, ‘कोई भी प्रणाली 100 प्रतिशत परफेक्ट नहीं हो सकती।
हमें एक बेहतर प्रणाली के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। जब संसद ने 2015 में एनजेएसी पारित किया, तो सर्वोच्च न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया। उन्हें (सुप्रीम कोर्ट) हमें बताना चाहिए था कि कौन सी प्रणाली बेहतर होगी।’
कानून मंत्री की टिप्पणियों को उनकी ‘निजी राय’ बताते हुए, न्यायमूर्ति ललित ने कहा, ‘कॉलेजियम प्रणाली को सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ की मंजूरी मिली है।’
यह देखते हुए कि एनजेएसी को फिर से पेश करने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी और ऐसा करने के लिए सरकार का विशेषाधिकार है, न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि जब तक ऐसा नहीं हुआ, न्यायपालिका को सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा न्यायिक नियुक्ति के निर्धारित मानदंडों का पालन करना होगा।
पूर्व सीजेआई की टिप्पणी न्यायमूर्ति एसके कौल की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा कॉलेजियम की सिफारिशों पर केंद्र की तरफ से देरी पर गंभीर आपत्ति जताए जाने के दो दिन बाद आई है।
फैसलों का बचाव
माओवादी लिंक के आरोपी जीएन साईबाबा को बरी करने के खिलाफ महाराष्ट्र राज्य की अपील को सुप्रीम कोर्ट में 15 अक्तूबर (शनिवार) को सूचीबद्ध करने की आलोचना को खारिज करते हुए पूर्व सीजेआई ने कहा कि इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है।
दिल्ली के छावला इलाके में महिला से गैंगरेप और हत्या मामले में तीन आरोपियों की मौत की सजा रद्द करने के फैसले का भी पूर्व सीजेआई ने बचाव किया। उन्होंने कहा, ‘तीनों लोगों को परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर मौत की सजा मिली ... तथ्य की स्थिति ने इतनी स्पष्टता नहीं दिखाई।’
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