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Thursday, May 1, 2025

मनाया गया इंटरनेशनल वेस्ट डे


गोरखपुर। इंटरनेशनल वेस्ट डे, वसारतपुर गोरखपुर में मनाया गया। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को ग्लोबल वेस्ट से संबंधित समस्याओं एवं उसके समाधान के बारे में जागरूक करना था। इस तकनीकी संगोष्ठी में मदन मोहन मालवीय तकनीकी विश्वविद्यालय सेवानिवृत्त प्रोफेसर्स, कार्यरत प्रोफेसर्स, सेवानिवृत्त मुख्य अभियन्ता, अधीक्षण अभियन्ता, अधिशासी अभियन्ता व पत्रकारों ने भाग लिया।

इस विषय पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर ओम शंकर मौर्य पूर्व महाप्रबंधक एम०एच०ई० इंडिया लिमिटेड ने कूड़े से उत्पन्न होने वाली समस्याओं एवं उनके निदान के बारे में विस्तृत रूप से बताया। संपूर्ण विश्व में प्रतिवर्ष 12 मिलियन टन टेक्सटाइल कूड़ा एकत्रित होता है। इसकी भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता हैं यदि एक फुल ट्रक लोड टेक्सटाइल कूड़ा प्रति सेकंड साल भर तक लैंडफिल साइट में डिस्पोज करें तो वह 92 प्रतिशत मिलियन टन के बराबर होगा। इस कूड़े में 87 प्रतिशत कूड़ा मानव-अविघटनीय (अजैविक) होता है तथा लगभग 15 से 20 प्रतिशत तक रिसाइक्लिंग होता है। भारतवर्ष में तो केवल 10 प्रतिशत ही होती है। अजैविक कूड़ा यदि लैंडफिल साइट में डिस्पोज करेंगे तो यह केमिकल लीचिंग के माध्यम से ग्राउंड वाटर जल को प्रदूषित करेगा तथा उसको जलाए तो वायु प्रदूषण पैदा करेगा। दोनों ही प्रदूषण मनुष्य के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। इसके प्रभाव को कम करने एवं साफ करने के लिए सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ते हैं तथा प्रभावित व्यक्तियों के स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए अत्यधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं। टेक्सटाइल इंडस्ट्री एक साल में 100 बिलियन नए गारमेंट्स बनाती है तथा इसमें 30 प्रतिशत गारमेंट्स नहीं बेचे जाते हैं, नहीं पहने जाते हैं। या तो इनको लैंडफिल साइट से डिस्पोज किया जाता है या इनको इन्सीनरेशन प्लांट से जलाया जाता है। इससे कितना प्रदूषण होता होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है।

इस समस्या का एक ही उपाय है कि वेस्ट को जीरो किया जाए। वेस्ट को एक रा मैटेरियल की तरह प्रयोग करके सामान बनाया जा सकता है। लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है। जैविक हुआ तो आसानी से उपयोग किया जा सकता है लेकिन अनेबिक के लिए रिसाइक्लिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की व्यवस्था बनानी पड़ेगी तथा रिसाइक्ल्ड मेटेरियल से बने उत्पादों के लिए बाजार की आवश्यकता होगी। यदि कपड़ा सिंगल फैब्रिक हो तो रिसाइक्लिंग आसानी से किया जा सकता है लेकिन मिक्सड फैब्रिक में दोनों फैब्रिक को अलग करना मुश्किल होता है। रिसाइक्लिंग से इनसे बने हुए उत्पादों की कीमत ज्यादा नहीं होनी चाहिये तथा इनके लिए बाजार होना भी आवश्यक है। सिंथेटिक टी-शर्ट को केवल महीने में दो बार धोए तो एक मिलियन माइक्रो फाइबर नदी, तालाब एवं समुद्र में जाता है। टेक्सटाइल इंडस्ट्री से समुद्र से 35% माइक्रो फाइबर समुद्र में पहुंचता है। एक एस्टीमेट के मुताबिक 2050 तक समुद्र में माइक्रोफाइबर या प्लास्टिक  मछलियों के बराबर या उससे ज्यादा होंगे। ऐसा हुआ तो ओसेन इको सिस्टम से प्रभावित होगा। मछलियों की संख्या कम होती जा रही हैं नदियां प्रदूषित होगी तथा मछलियों के खाने से मनुष्यों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। मछुआरों की भी समस्या होगी। उपरोक्त स्थिति से बचने के लिए जरूरी है कि हम जैविक फैब्रिक कब जैसे सूती, सिल्क, लिनन, मूल आदि का प्रयोग करे। कपड़े कम खरीदे लेकिन टिकाऊ खरीदे, फैशन की तरफ न भागे। पुराने कपड़े को प्रोफेशनल टेलर के माध्यम से लाइफ स्टाइल बढ़ाये जा सकते है। पुराने कपड़े से पर्दे तथा बैग बनाये जा सकते है। कपड़ा खरीदने से पहले यह जरूर देखे कि कपड़े के प्रोडक्शन से  वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं डाल रहे है। कपड़ों की रिसाइक्लिंग करके उनको रा मटेरियल में परिवर्तित किया जा सकता है तथा इनसे नये कपड़े बनाये जा सकते है। यदि हम चाहते है कि टेक्सटाइल वेस्ट जीरो हो तो सरकार, इंडस्ट्री तथा कंज्यूमर को एक साथ आना पड़ेगा

सरकार को एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर्स रिस्पांसिबिलिटी(ईपीआर) स्कीम लागू करना चाहिये। इसमें प्रोडक्शन से लेकर डिस्पोजल तक की जिम्मेदारी प्रोड्यूसर की होगी।यदि हम चाहते है कि आने वाली पीढ़ी को संसाधनों की कमी ना हो तथा उन्हें स्वच्छ वातावरण शुद्ध पानी एवम् शुद्ध हवा मिले तो हमें नैतिक मूल्य का उपयोग करना चाहिये।

इस कार्यक्रम में प्रोफेसर आलोक राय, प्रोफेसर मदन चंद्र मौर्य, प्राचार्य डी आर मौर्य, श्री ए के राय (मुख्य अभियन्ता), श्री धीरेन्द्र चतुर्वेदी (अधीक्षण अभि०), मदन श्रीवास्तव (अधीक्षण अभि०),  एस एन तथा श्री आर एस मौर्य (संयोजक अभि०), आभिषेक सिंह, प्रवीन कुशवाहा पत्रकार एवम राहुल मिश्रा ने भाग लिया।

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