बस्ती। अपने माता-पिता का अनादर कर दुराचार और पापाचार करने वाले सभी धुन्धकारी हैं। धुन्धकारी पाँच वेश्याओं में फंस जाता है। शब्द, स्पर्श, रूप,रस, और गन्ध जीव को बांध लेते हैं। जिन हाथों से श्रीकृष्ण की सेवा न हो, जो हाथ परोपकार न करें वे हाथ शव के समान हैं। तन और मन को दण्ड दोगे तो पाप का क्षय होगा। जिसके चरित्र को देखने मात्र से ही घृणा हो वही धुन्धकारी है। वह अपने कुकर्मों से प्रेत बनता है। गोकर्ण जैसा भाई और भागवत ही प्रेत योनि से मुक्ति दिला सकते हैं। श्रीमद्भागवत मुक्ति की कथा है। यह सदविचार श्री अयोध्या जी के प्रसिद्ध कथाकार डॉ राम सजीवन शास्त्री जी महाराज ने हर्रैया विकासखण्ड के समौड़ी गाँव में श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिन व्यासपीठ से व्यक्त किया।
बैकुंठ में जो आनंद है वही भागवत कथा में मिलता है। मंगलाचरण के महत्व का विस्तार से वर्णन करते हुए शास्त्री जी ने कहा कि सत्कर्मों में अनेक विघ्न आते हैं। भगवान शिव का सब कुछ अमंगल है किंतु उनका स्मरण मंगलमय है उन्होंने काम को जलाकर राख कर दिया, मनुष्य जब तक सकाम है उसका मंगल नहीं होता। ईश्वर के अनेक स्वरुप है किंतु तत्व एक है। ध्यान करने से ईश्वर और जीव का मिलन होता है। जगत की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश भी है। कृष्ण गांधारी से मिलने गए तो गांधारी ने उन्हें श्राप दिया कि तुम्हारे वंश में कोई भी नहीं रहेगा। इसमें भी श्रीकृष्ण आनंदित हैं।
श्रीमद्भागवत के महात्म कथा का विस्तार से वर्णन करते हुए शास्त्री जी नें आत्मदेव, गोकर्ण, धुन्धकारी, और मंगलाचरण प्रसंगों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि माँगने से प्रेम की धारा टूट जाती है। प्रभु से कुछ मत माँगो, ईश्वर को अपना ऋणी बनाओ। ईश्वर पहले हमारा सर्वस्व ले लेते हैं और फिर अपना सर्वस्व हमें दे देते हैं। गोपियों ने भगवान से कुछ नही माँगा, गोपियों के प्रेम शुद्ध है।वे जब भी भगवान का स्मरण करती हैं तो ठाकुर जी को प्रकट होना पड़ता है।
इस अवसर पर श्री नाथ मिश्र, दुर्गा प्रसाद पाण्डेय, डॉ ध्रुव कुमार मिश्र, कल्पनाथ ओझा, अनिल मिश्र, राजू मिश्र, सुनील मिश्र, महेंद्र मिश्र, विजय मिश्र, बब्बू मिश्र, रवीश, भोलू, अरुण, उत्तम, हर्ष, सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
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