बस्ती। जनपद के विकासखंड कप्तानगंज की ग्राम पंचायत बट्टूपुर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। दो परियोजनाओं में बिना मज़दूरों के काम चलने और 143 श्रमिकों की फर्जी ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज करने के गंभीर आरोप लगे हैं।
वर्तमान में दो परियोजनाओं पर काम बिना मजदूर के कराया जा रहा है। पहली परियोजना “बगही नहर से हृदय राम के घर तक चकबंध कार्य" (मस्टरोल क्र. 3521-3528) और दूसरी परियोजना "सूरज के तालाब से बगही गांव तक चकबंध कार्य" (मस्टरोल क्र. 3530-3536) परियोजनाओं में पुरानी तस्वीरें अपलोड करके मज़दूरों की हाज़िरी दिखाई जा रही है, जबकि वे कार्यस्थल पर मौजूद नहीं हैं।
आरोप है कि प्रधान, रोज़गार सेवक और पंचायत सचिव की मिलीभगत से इस घोटाले को अंजाम दिया जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि हाज़िरी दर्ज किए जा रहे लोगों में निजी क्षेत्र में कार्यरत युवा, दूसरे राज्यों में रोज़गार करने वाले, यहाँ तक कि 70 वर्षीय वृद्ध भी शामिल हैं। जिनका काम से कोई वास्तविक संबंध नहीं है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यह मामला पूर्व में भी उजागर हो चुका है, लेकिन जिम्मेदारों ने कोई कार्रवाई नहीं की। ऑनलाइन हाज़िरी प्रणाली भ्रष्टाचार रोकने के लिए सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल को इस तरह सिस्टम में खामी का फायदा उठाकर ध्वस्त कर दिया गया है।
सूत्रों के अनुसार, इस फर्जीवाड़े से लाखों रुपये का सरकारी धन बेहूदगी से लूटा जा रहा है। आशंका जताई जा रही है कि जनप्रतिनिधि और अधिकारी मिलकर यह घोटाला अंजाम दे रहे हैं, जो लंबे समय से जारी है।
यह घोटाला मनरेगा की मूल भावना के सीधे विपरीत खड़ा है। यह योजना, जिसे ग्रामीण गरीबों को "काम के अधिकार" (Right to Work) की कानूनी गारंटी देने के लिए बनाया गया था, आज उन्हीं हाथों में भ्रष्टाचार का औजार बन गई है। मांग-आधारित रोजगार, पारदर्शी ऑनलाइन प्रणाली, और 15 दिनों में मजदूरी का भुगतान यहां व्यवस्था के दोहन के लिए इस्तेमाल हो रही हैं। जहाँ इसका लक्ष्य आजीविका सुरक्षा और ग्रामीण बुनियादी ढाँचे का विकास था, वहीं ग्राम पंचायत बट्टूपुर में यह फर्जीवाड़े और सरकारी धन के गबन का जरिया बन गई है।
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना यह है कि जिस ऑनलाइन प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) को पारदर्शिता का आधार माना गया, उसी के डेटा से घोटालेबाजों ने 143 कागजी मजदूर गढ़ लिए।यदि इस "ग्रामीण विकास की रीढ़" योजना की साख बचानी है, तो तत्काल जाँच, दोषियों की गिरफ्तारी और पैसे की वसूली के साथ-साथ प्रणालीगत सुधार अनिवार्य हैं। वरना, गरीब का अधिकार केवल भ्रष्टाचारियों का मुनाफा बनकर रह जाएगा।
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