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Tuesday, November 28, 2023

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प्रेम ईश्वर को बस में करने का सर्वोत्तम साधन - शास्त्री

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बस्ती। ईश्वर के लिए जो जीता है वही सन्यासी है। गोपियाँ ईश्वर के लिए जीती थी इसलिए उन्हें प्रेम सन्यासिनी कहा गया। प्रभु प्रेम में हृदय का द्रवित होना ही तो भक्ति है । कृष्ण कथा में प्राणायाम करने की कोई आवश्यकता नहीं है यह जगत को भुला देती है। मिठास प्रेम में होती है वस्तु में नहीं। स्वाद गोपियों के माखन में नहीं प्रेम में था। यशोदा के हृदय में बसा हुआ कन्हैया जागा है किंतु हमारे हृदय का कन्हैया सोया हुआ है। यह सद्विचार मंगलवार को अयोध्या के प्रसिद्ध कथाकार डॉ राम सजीवन शास्त्री ने हरैया के समौड़ी गांव में श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल लीला का रोचक वर्णन करते हुए व्यक्त किया।
शास्त्री जी ने कन्हैया के बाल लीला के विविध प्रसंगों, गोपियों के साथ अनुराग, माखन चोरी आदि प्रसंगों का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि जब तक परमात्मा को प्रेम से ना बांधा जाए संसार का बंधन बना रहता है ईश्वर को फल दोगे तो वह तुम्हें रत्न देंगे पाप के जाल से छूटना आसान नहीं है जब तक पुण्य का बल बढ़ता नहीं पाप की आदत नहीं छूटती।
शास्त्री जी ने कथा का विस्तार करते हुए कहा कि परमात्मा को बस में करने का सर्वोत्तम साधन प्रेम है । कन्हैया ने कभी जूते नहीं पहने, गायों की जैसी सेवा उन्होंने किया शायद ही कोई कर सके। गाय में सभी देवों का वास है, गाय सेवा से अपमृत्यु टल सकती है। बांसुरी का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि बांसुरी अपने स्वामी की इच्छा अनुसार ही बोलती है इसलिए भगवान की जो इच्छा हो वही बोलना चाहिए।
   इस दौरान राजमणि पाण्डेय, राकेश तिवारी, देवेंद्र नाथ मिश्र बाबू जी, धीरेन्द्र नाथ मिश्र, श्रीनाथ मिश्र, सुरेंद्र नाथ मिश्र, राम सुमति मिश्र, नन्द कुमार मिश्र, धरणीधर मिश्र, रामफूल मिश्र, विजय नारायण मिश्र, ओम नारायन मिश्र, ओम प्रकाश मिश्र, उमाकान्त तिवारी, अनिल मिश्र, सुनील मिश्र, दुर्गा प्रसाद मिश्र, महेंद्र मिश्र, जगदंबा ओझा, प्रेम शंकर ओझा, पवन शुक्ल, विजय मिश्र, काशी प्रसाद पाण्डेय, जय प्रकाश पाण्डेय, भाल चंद्र शुक्ल, पशुपति नाथ शुक्ल, गणेश शुक्ल, मनमोहन, भवानी सेठ, गंगोत्री प्रसाद शुक्ल, रमेश चन्द्र शुक्ल, आनन्द पाण्डेय, चन्द्र प्रकाश मिश्र, बब्बू, रवीश, वेद उत्तम, बजरंगी, गोपाल, हर्ष, प्रशान्त, छोटू सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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